उम्रभर तम्मनाओ को अपनी में तलाशता रहा
उम्रभर तम्मनाओ को अपनी में तलाशता रहा
अंधेरी गलियों में भटकते मुसाफिर सा में भागता रहा।
ख्वाहिशे इतनी पुलिंदा हो गयी थी मेरी
उसकी चाहत में जिम्मेदारियो से हमेशा भागता रहा।
अश्क कैसे छिपाऊं इस अहले महफिल से मेँ
गमो के सायो को खुद से अकेले में बाटता रहा।
और हसरते इतनी बढ़ चुकी थी मेरी
कुछ कर दिखाने की चाह मेँ सारी उम्र जागता रहा।
bahut acha likha hai